Vol. 6, Issue 2, Part E (2020)
विद्यालयों में संगीत माध्य से शिक्षा का व्यवहारीक महत्त्व
विद्यालयों में संगीत माध्य से शिक्षा का व्यवहारीक महत्त्व
Author(s)
आदित्य प्रकाश
Abstractसंगीत के सार्वभौमिक प्रभाव से सभी परिचित है, आदिम युग से ही संगीत मनोरंजन के साथ ईश्वर आराधना का महत्वपूर्ण आधार रहा है। दुनियाँ के अधिकतर धर्म ग्रन्थ काव्य रूप में है। संगीत के स्वरो मे असीमशक्ति है, जिससे मानव तो क्या हिंसक प्राणी भी पालतु वन जाते है। संगीत स्वरो भी साधना करने से मानव का अन्तशः से शुद्ध और प्राकृत हो जाता है उससे क्लेश, ईर्ष्या, दुष्टभाव समाप्त हो जाते हैं, संगीत का अपना कोई स्वरूप नही होता है, प्रयोक्ता इसका जिस प्रकार उपयोग करें, सफलता उसकी क्षमता पर निर्भर करता है।
वृन्दावन की भी मंदिरों मे गोस्वामी राधा कृष्ण को जहाँ राग भोग लगाते है, चारों प्रहर का राग सुनाया जाता है, वैष्णव कीर्तन करते है। वही अजमेर शरीफ में हजरत मोईनउद्दीन चिस्ति ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स पर कौव्वाल अमीर खुसरो की रचना गाते है, “छाप तिलक सब छिनी लियो मौसे नौन मिलाय के” येसुन उपस्थित सभी लोग झुमने लगते है। संगीत का अपना कोई रंग नहीं होता है।
संगीत की इन्ही विशेषता को ध्यान मे रख कर विद्यालयी शिक्षा मे इसके उपयोग पर केन्द्रित हैं प्रस्तुत शोध पत्र, इसके अर्न्तगत पाठ्य विषयो के साथ नैतिक शिक्षा से सम्बन्धित विषयों को भी गीत संगीत के माध्यम से बच्चों को पढ़ायें जाने के सकारात्मक परिणाम को विद्वानो ने अनुभव किया है, कि बच्चे पाठ की तुलना में किसी भी बात कों खेल -खेल मे गाते गाते याद कर लेते है, बच्चो में कुछ नया सीखने की जिज्ञासा होती है। इसतरह शिक्षा मे संगीत को भी शिक्षा के साथ जोड़ने से इसके सार्थक परीणाम प्राप्त होंगे।
How to cite this article:
आदित्य प्रकाश. विद्यालयों में संगीत माध्य से शिक्षा का व्यवहारीक महत्त्व. Int J Appl Res 2020;6(2):378-380.