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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 7, Issue 2, Part D (2021)

प्रकृति एक विवेचन

प्रकृति एक विवेचन

Author(s)
अमर नाथ
Abstract
"स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं आतुरस्य विकार प्रशमनं च"
(च० सू० 30/26)
स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा अर्थात् स्वास्थ्य को बनाये रखना तथा रोगी के रोग का प्रशमन करना आयुर्वेद ज्ञान का प्रयोजन है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रकृति सम्बन्धित सम्यक् ज्ञान का बड़ा महत्त्व है।
प्रकृति शब्द प्र + कृति दो शब्द से बना है।
यहाँ प्र से तात्पर्य - प्रकट होने से है।
कृति से तात्पर्य - सृष्टि या संरचना से है।
जैसा कि शब्दकल्पद्रुम तथा ब्रह्म वैवर्त पुराण में कहा है –
प्रकृष्ट वाचकः प्रश्च कृतिश्च सृष्टि वाचकः।
(शब्दकल्पद्रुम तृतीय भाग पृ० स० 242)
शब्द व्युत्पत्ति के आधार पर भी देखा जाय तो कहा है –
“प्रकरोति इति प्रकृति:"
(सुश्रुत शारीर- घाणेकर टीका अ० 1)
अर्थात् जो प्रकट करता हो उसे प्रकृति कहते हैं।
शारीरिक प्रकृतियाँ (देह प्रकृतियाँ):
शारीरिक प्रकृतियाँ त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) के प्रबलता के अनुसार होती हैं, वहीं मानसिक प्रकृतियाँ (सत्व, रज, तम) के आधार पर होती है।
आयुर्वेदीय संहिताओं में वर्णित उद्वरण से यह स्पष्ट एवं निश्चित है कि प्रकृति निर्माण शुक्र शोणित संयोग के समय दोषों के प्रबलता (उत्कटता) के आधार पर होती है। जिसके आधार पर सात प्रकार की प्रकृतियाँ बताई गयी है।
दो दोषों की प्रधानता से – तीन (वातपित्तज वातकफज, पित्तकफज) तीन दोषों की सम्यक् अवस्था से एक (वातपित्तकफज) प्रकृति को मौलिक स्वभाव कहा गया है, जो समवाय सम्बन्ध से रहते हुए अपरिवर्तनीय होती है।
प्रकोपो वाऽन्यथाभावो क्षयो वा नोपजायते।
प्रकृतिनां स्वभावेन जायते तु गतायुषः।।
(सु० शा० 4/77)
स्वभाव से ही प्रकृति का कोप या अन्यथा भाव (प्रकृति के दोष के कारण रोगोत्पत्ति) या प्रकृति का ह्रास नहीं होता है अर्थात् स्वाभाविक प्रकृति में आजन्म कोई परिवर्तन नहीं होता है। प्रकृति में इस प्रकार के परिवर्तन आयु समाप्ति के सूचक है।
प्रकृतिः जन्मत्रभृति वृद्धो पातादिः।
(च० सू0 17/62 पर-चक्रपाणि)
आधुनिक विज्ञान में भी शारीरिक एवं मानसिक प्रकृतियों का वर्गीकरण Phenotype तथा Genotype के रूप में किया जाता है। एक अमेरिकी वैज्ञानिक शेल्डन ने शारीरिक प्रकृतियों पर कार्य किया है, जो आयुर्वेदीय प्रकृति ज्ञान का अनुवाद लगता है। गर्भज विकास में जननस्तर बनने के समय जननस्तर विशेष की प्रबलता के आधार पर देहप्रकृति -
1) Endomorph - Endoderm Layer की प्रधानता से
2) Ectomorph - Ectoderm Layer की प्रधानता से
3) Mesomorph - Mescderm Layer की प्रधानता से
उपरोक्त यह तीन प्रकार के बताये हैं, इतना ही नहीं दो जननस्तर की संयुक्त प्रबलता से पुन तीन प्रकार तथा तीनों स्तरों की समप्रबलता से एक प्रकार, इस प्रकार सात प्रकार की देह प्रकृतियों का वर्णन किया है। आयुर्वेदीय प्रकृति ज्ञान तथा शारीरिक भार एवं ऊँचाई पर एक समन्वयात्मक अध्ययन- उपरोक्त के परिपेक्ष में समीचीन प्रतीत होता ।
[The structure of Psychology (An introductory test educated by C.L. Howarth & K.L.E.C. Willham) Willian sheldon (1940-1942)]
Pages: 201-205  |  1520 Views  141 Downloads
How to cite this article:
अमर नाथ. प्रकृति एक विवेचन. Int J Appl Res 2021;7(2):201-205.
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