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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 8, Issue 6, Part H (2022)

प्राचीन भारत में पशुपालन पद्धतियों की अवधारणा

प्राचीन भारत में पशुपालन पद्धतियों की अवधारणा

Author(s)
गजेन्‍द्र कुमार यादव
Abstract
प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि पुशपालन भारत में आजीविका का मुख्य आधार था और यहाँ के लोगों ने पशुओं को ईश्वर का दर्जा दिया। अनेक पशुओं के देवी-देवताओं के वाहन रूप में पदस्थापित किया गया और आधुनिक दौर के संचार युग में भारतवासी इनकी पूजा कर रहे हैं। पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण बना हुआ है और कई समुदाय के लोगों की आजीविका पशुओं के सहारे ही संचालित हो रही हैं। पशुओं को पालने-पोसने की व्यवस्था का सूक्ष्मतम अध्ययन करते ही स्पष्ट हो जाता है कि मानवों ने शिकारी जीवन से ही पशुओं का उपयोग करना आरंभ किया जो कालांतर में कृषि, आवागमन आदि क्षेत्रों में जाकर स्थिर हो गई। मानवों ने बहुउपयोगी पशुओं को पालतू बनाया और उनके प्रजनन्‍न समेत जीवन की सभी अवस्थाओं पर नियंत्रण कर लाभ अर्जित करने की पद्धति विकास किया। समय चक्र के साथ पशुपालन ने व्यवस्था का रूप लिया। खेत-खलियानों, बैलगाड़ी-टमटम आदि में पशुओं के उपयोग ने मानवों की कठिनाईयाँ दूरकर दी। पशुओं से दोस्ती कर मानवों ने अपने उपभाग को बढ़ाया। पशुपालन प्रगति करने लगा और इस प्रगति-चक्र का संपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य भी मौजूद है।
Pages: 614-615  |  166 Views  45 Downloads
How to cite this article:
गजेन्‍द्र कुमार यादव. प्राचीन भारत में पशुपालन पद्धतियों की अवधारणा. Int J Appl Res 2022;8(6):614-615.
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