Vol. 8, Issue 8, Part E (2022)
जैन दर्शन: नय शास्त्र (व्यवहार नय, निश्चय नय)
जैन दर्शन: नय शास्त्र (व्यवहार नय, निश्चय नय)
Author(s)
डॉ. सुमन रघुवंशी
Abstract
जैन -दर्शन यह स्वीकार करता है कि तत्व का ज्ञान प्रमाण और नय के द्वारा होता है। ’’प्रमाण वस्तु के सम्पूर्ण रूप को ग्रहण करता है जबकि ’नय-प्रमाण’ के द्वारा गृहीत वस्तु के एक अंश को बतलाता है। प्रमाण के द्वारा जानी गई वस्तु को, नय एक देश से स्पर्श करता है जबकि प्रमाण वस्तु को समग्र रूप से ग्रहण करता है और वह अंश विभाजन की ओर प्रवृत्त नहीं होता है। वस्तु अनन्त धर्मवाली है इसलिए नय, वस्तु के किसी एक धर्म को बतलाता है। जैसे, ’’यह घट है’’, - इस ज्ञान में, प्रमाण घड़े को अखण्ड भाव से उसके रूप, रस, ग्रन्थ, स्पर्श आदि अनन्त गुण-धर्मो को विभाग न करके पूर्ण रूप में जानता है जबकि कोई भी ’नय’ उसका विभाजन करके रूपवान घड़ा आदि रूपों में अपने-अपने अभिप्राय के अनुसार जानता है।