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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 9, Issue 3, Part C (2023)

घरेलू कामकाजी महिलाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन

घरेलू कामकाजी महिलाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन

Author(s)
लक्ष्मी कुमारी
Abstract
घरों में काम करने वाली महिलाएं अर्थ उपार्जन हेतु सुबह से शाम तक घरों में घरेलू कामकाज करती हैं। गरीबी, महंगाई एवं दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए महिलाएं घर से बाहर निकलकर दूसरे के घरों में जाकर काम करती हैं। औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण घरेलू कामकाजी महिलाओं की मांग में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में शहरों की ओर पलायन हुआ है।
इससे उनकी पारिवारिक आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है और उनके जीवन स्तर में परिवर्तन आयकताओं तक को पूरा करने के लिये पति पर निर्भर होना पड़ता था वहीं आज वे स्वयं अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर रही हैं।घरेलू कामकाजी महिलाओं की संख्या करोड़ों में है। आश्चर्य की बात है कि इन्हें अभी तक कामगार का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है। नारी उत्पीड़न का एक प्रमुख रूप यौन उत्पीड़न है। स्त्रियाँ जहाँ कार्य करती हैं, वहाँ उनके मालिकों एवं बाॅस द्वारा कभी-कभी स्त्रियों का यौन शोषण भी किया जाता है। उन्हें ऐसा करने के लिए आर्थिक एवं अन्य प्रकार के प्रलोभन भी दिए जाते हैं और समर्पण न करने की स्थिति में उनके साथ दुव्र्यवहार किया जाता है। उन्हें परेशान किया जाता है, उन पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें फंसाया जाता है जिससे तंग आकर या तो वे नौकरी छोड़ देती हैं या समर्पण कर देती हैं।
सरकार द्वारा घरेलू कामगारों के लिए किए जा रहे प्रयास अपर्याप्त है। अतएव इस संबंध में सरकार द्वारा गम्भीरता से कई कदम उठाने की जरूरत है।
Pages: 155-160  |  792 Views  511 Downloads


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How to cite this article:
लक्ष्मी कुमारी. घरेलू कामकाजी महिलाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन. Int J Appl Res 2023;9(3):155-160.
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