Vol. 9, Issue 5, Part E (2023)
नीतिपरक संस्कृत-साहित्य को भर्तृहरि का योगदान
नीतिपरक संस्कृत-साहित्य को भर्तृहरि का योगदान
Author(s)
डॉ. विद्याधर सिंह
Abstractनीति शब्द का अर्थ मार्ग को प्रषस्त करने का नियम है। मनुष्य अपने व्यवहार या आचरण से जिन नियमों या सिद्धान्तों एवं निर्देषों को निष्चित करता है, उसे ही नीति कहते हैं। इससे मनुष्य का जीवन ऊर्ध्वगामी बनता है। वस्तुतः नैतिकता ही जीवन है और अनैतिक घृण्य है। मानवता की पृष्ठभूमि नैतिकता ही है। नैतिकता की अनादि और अनन्त धारा से अनभिज्ञ व्यक्ति मिथ्या भ्रम में ही अनैतिक कर्म में सुख की कल्पना करता है। नैतिक जीवन की अनुभूति से शून्य व्यक्ति का पाषविक जीवन होता है। भर्तृहरि की नीतिषतक एवं वैराग्यषतक, नीतिपरक इन दोनों ही रचनाओं से विदित होता है कि उन्हें संसार का व्यापक अनुभव था। इनमें उन्होंने समाज को जो उपदेष और आदेष दिये हैं, उसकी प्रवृŸिा ऋग्वेदादि ग्रन्थों से ही दिखाई देती है। उन्होंने अपनी कृतियों में मानव-जीवन के विविध पक्षों के यथार्थ स्वरूप को चित्रित किया है। भर्तृहरि के परवर्ती नीतिविषयक साहित्यकारों में आचार्य शंकर, आचार्य क्षेमेन्द्र, जल्हण, षिल्हण, धनदराज द्या द्विवेदी तथा पण्डितराज जगन्नाथ प्रभृति अनेक काव्यकारों के नाम एवं उनकी कृतियाँ उल्लेखनीय हैं। इनमें से कई नीतिकाव्यकारों की कृतियों पर भर्तृहरि का प्रभाव देखा जा सकता है।
How to cite this article:
डॉ. विद्याधर सिंह. नीतिपरक संस्कृत-साहित्य को भर्तृहरि का योगदान . Int J Appl Res 2023;9(5):344-348.